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हुसैन की मौत-राष्ट्रीय क्षति या राष्ट्रीय मुक्ति?

सर झुकाकर आसमा को देखिये ...........
सर झुकाकर आसमा को देखिये ...........
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प्रख्यात चित्रकार मकबूल फ़िदा हुसैन की मृत्यु हो गई”” .. मृत्यु तो सभी की होनी है और किसी की भी मृत्यु अशुभ ही होती है .. कोई उसे भारत का पिकासो कह रहा था तो कोई राष्ट्रभक्त बता रहा था तो कोई बहादुरशाह की उपाधि दे रहा है ..,,पर मुझे अपार क्षोभ हुआ जब मैंने देखा की भारत के प्रधानमंत्री हुसैन की मौत को राष्ट्रीय क्षति बता रहे थे .. मेरे मानस पटल पर उस कुंठित व्यक्ति द्वारा बनाई गई वे सारी पेंटिंग्स घुमने लगी जिसके माध्यम से उसने भारत की आत्मा और उसके मान बिदुओ पर प्रहार किया था …….. हम कैसे भूल गए एक घटिया और चरित्रहीन व्यक्ति ने किस तरह भारत में ही रहकर भारत की आत्मा के साथ बलात्कार किया और हम नपुन्सको की तरह उसे बर्दाश्त करते रहे और कुछ नमकहराम उसे कला में अभिव्यक्ति का दर्जा देकर तालिया पीटते रहे. उस घ्रिडित व्यक्ति को तो देश की मिटटी भी नसीब नहीं हुई .. ये उसकी सजा थी नियति ने लिख रखी थी ..

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यह हिन्दुस्तान ही था जिसने हुसैन को बर्दाश्त किया .. अन्यथा दुनिया के किसी और कोने में किसी अन्य मानबिंदु के साथ ऐसा खिलवाड़ करने पर हुसैन का मुख काल करके उसकी गर्दन उतार दी जाती . न की उसे राष्ट्रीय धरोहर कहा जाता .. मुझे नहीं पता प्रधानमंत्री जी को कौन सी क्षति नजर आई राष्ट्र की .. मै तो इसे राष्ट्रीय मुक्ति ही मानता हु .

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कोई भी कलाकार संवेदनशील होता है . उसकी संवेदना अपने समाज और राष्ट्र के प्रति होती है और वही उसके कृतित्व में झलकती है . पर हुसैन का कृतित्व जाने कहा से प्रेरणा पाता था की उसने भारतीय आस्था के साथ इतना घिनौना मजाक किया ,, कुछ लोगो का मानना है हुसैन ने प्रयोगवादी कला में भारत की संस्कृति से प्रेरणा पाई .. कितना हास्यास्पद है ये की जिस संस्कृति से प्रेरणा पाई उसे ही भेट चढ़ा दिया अपनी कुंठाओं पर . बाजार में नीलाम कर दिया .

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हमारा राष्ट्रीय चरित्र निरंतर समाप्त होता जा रहा है और उसे हम स्वयं अपने हाथो से ख़त्म कर रहे है प्रयोगधर्मिता के नाम पर . सवाल ये है की ऐसे व्यक्ति को भारतीय कला का पिकासो बताकर नए कलाकारों के सामने क्या आदर्श रख रहे है हम ? क्या उन्हें छुट दे दी जाये की वे कला के नाम पर अपनी संस्कृति और मान बिन्दुओ की धज्जिया उड़ा दे ,,और कुख्याति प्राप्त करे .. हुसैन राष्ट्रीय गर्व नहीं राष्ट्रीय शर्म है हम कभी नहीं चाहेंगे की देश के कलाकार उसका अनुगमन करे ..वह कला कभी प्रशंशनीय नहीं हो सकती जो राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण न कर सके . हुसैन की मौत को राष्ट्रीय क्षति कितने लोग मानते है ये तो मै नहीं जानता .. पर कितने लोग राष्ट्रीय मुक्ति मानते है ये जरुर जानना चाहता हु . कम से कम मै हुसैन को कलाकार तो कदापि नहीं मान सकता मै तो इसे राष्ट्रीय मुक्ति ही मानता हु .. आप ?

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