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पिछले कुछ दिन बहुत व्यस्तता भरे रहे.. लगन का समय है और जनसँख्या का एक बड़ा हिस्सा विवाह में व्यस्त है ..उसे न बजट की चिंता है न पेट्रोल और गैस के दाम की ….. अब आप कहेंगे की खुद तो विवाह कर लिया बाकी लोगो के विवाह से क्यों तकलीफ होने लगी.. तो साहब .. नाराज न हो कोई तकलीफ नहीं है.हमें .. …..
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वैसे तो लोग बेटी – बहन की शादी में हेलीकाप्टर देने लगे है .. मेरा क्या जाता है इसमें .. पर मै सोच में इसलिए पड गया था क्योकि मित्र की आर्थिक स्थिति इतनी बेहतर नहीं थी ..और ये सारा काम मात्र 4 -5 गाडियों में हो सकता था…इसमें धन और पेट्रोल की भी बचत होती... पर उफ़ ये हमारी देखने – दिखाने की आदत ..आज भी हम कर्ज लेकर हैसियत को दिखाने में लगे हुए है..
जब कीमते बढती है तो हम सरकार विरोधी झंडा उठाकर निकल पड़ते है सड़को पर.
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सरकारी कार्यालयों में और कालोनियों में दिन भर 100 वाट के जलने वाले बल्ब ऐसी व्यक्तिगत कोशिशो को किस तरह हतोत्साहित करते है आप अंदाजा लगा सकते है, हम अपने स्तर से छोटे प्रयास नहीं करना चाहते .. और पानी बिजली , इंधन सबके लिए सरकार के नाम का रोना रोते है… लिंडसे लोहान को गाँधी जी की बात समझ में आ गई की परिवर्तन की शुरुआत स्वयं से करनी चाहिए ... पता नहीं हमें कितना वक्त लगेगा ?
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