- 55 Posts
- 992 Comments
15 अगस्त को जब भारत स्वतंत्र हुआ तो वह स्वतंत्रता पूर्ण नहीं थी … वह पूर्ण हुई 26 जनवरी 1950 को उस समय नेहरु जी ने कहा की भारत पूर्ण गणतंत्र नहीं बना है बल्कि पूर्ण गणतंत्र बनने की प्रक्रिया में है … तबसे अबतक 61 वर्षो में हमने कभी ये जानने का प्रयास नहीं किया की ये प्रक्रिया गणतंत्र बनने की कहा तक पहुची …. ….
हम इस गणतंत्र को कैसे परिभाषित करे ये बड़ा यक्ष प्रश्न लगता है कभी कभी …..
जब इस देश का कृषि मंत्री ये कहे की रख रखाव की कमी के कारण लाखो टन अनाज सड गया और वो भी तब जब इस देश में करोणों लोग एक टाइम भूखे सोते है ….
या फिर इस देश का जिम्मेदार मंत्री महाभ्रष्टाचार के मुद्दे पर पर अपने लुटेरे नेताओं का पक्ष लेते हुए तमाम प्रतिष्ठित संस्थाओं को ही कटघरे में खड़ा करता है .. जहा एक विदेशी दलाल की जी हुजूरी में पूरा मंत्रिमंडल लग जाता है …और एकदूसरे पर कीचड़ उछालकर अपनी अपनी कालिख को ढकने का प्रयास करने में पूरी उर्जा लगा दी जाती है ..
जहा देश के एक कोने में तिरंगा फहराने को रोकने में पूरी सत्ता अपने ताकत लगा देती है ….. जहा एक राज्य का मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय सरकार के नेता एक खतरनाक आतंकवादी को फ़ासी न देने के पीछे ये तर्क देते है की इससे कश्मीर में दंगा हो जायेगा ,
देश के लुटेरो का नाम लेने में और लूट का अथाह धन देश में वापस लौटने में जिस बेशर्मी से अंतर राष्ट्रीय संधियों का बेतुका हवाला दिया जाता है ….
अमीर और गरीब की खाई अपनी सीमा के पार जा चुकी है ..इस देश का गरीब आज भी रोटी, कपडा, मकान की तलाश से बाहर अपनी सोच नहीं ला सका है क्योकि अभी उसे इनके ही लाले पड़े है, संसद और विधान सभाओं में लगातार पूंजीपतियों अपराधियों का प्रतिशत वर्ष दर वर्ष बढ़ता ही जाता है और जत्नता हर वर्ष छली जाने को मजबूर है ,…….
न्यायपालिका भी पूरी तरह पाक साफ़ नहीं पाती खुद को .. और जहा लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ धन दौलत की सुगंध में अपने आपको निष्पक्ष न रखकर बाजार और टी आर पी के पीछे भाग रहा है ,,
आज भी 40 प्रतिशत से अधिक शिक्षित मतदाता वोट नहीं देते, और पूंजीपति और दलाल राजनीतिक दलों के प्रायोजक बने हुए है और संसद उनके इशारो पर चलने को मजबूर है .
…………………………
विचारहीन ,सिद्धान्तहीन राजनीतिक दल , भ्रष्ट नौकरशाही .. और अपने लोकतान्त्रिक अधिकारों से अनभिज्ञ जनता ऐसी ही कुछ तस्वीर है हमारे लोकतंत्र की जो ये बताती है की लोकतंत्र हमारे लिए आज भी दूर की कौड़ी है वास्तविक लोकतंत्र से हम कोसो दूर है .…
यानी हमपर अभी एक जिम्मेदारी है की गणतंत्र दिवस मानाने से पहले गणतंत्र को बनाने में अपना योगदान दे . प्रश् ये उठता है की हम ये योगदान कैसे करे ? इसका एक मात्र तरीका यही है की देश के शिक्षित युवा ,, डाक्टर , इंजिनियर , शिक्षक इत्यादि अपने जीवन में देश के ग्रामीण हिस्से को प्रमुखता दे वह जाने और लोगो को जागरूक करने का कोई भी मौका मिले तो उसका उपयोग जरुर करे ..
ये सज्जन शक्तिया ही है जिनके कार्यो से देश में एक सामंजस्य बना हुआ है … कई ऐसे लोग है जो महिला उत्थान , ग्रामीण उत्थान ,, विकलांग बच्चो, शिक्षा स्वस्थ के क्षेत्र में अपनी अपनी क्षमता के जिसब से कार्य कर रहे है ….. और यकीं मानिए सरकारी वादों से लोकतंत्र नहीं बनेगा वह बनेगा इन्ही सज्जन शक्तियों के प्रयासों से …. तो क्यों न हम भी अपनी अपनी क्षमता के हिसाब से गणतंत्र के निर्माण में सहयोग करे … फिर सच्चा गणतंत्र मनायेगे ?…क्योकि गणतंत्र सिर्फ लिख देने से नहीं बनता .. और सत्ता पूर्ण गणतंत्र बनने नहीं देगी .…….
जय हिंद जय भारत
Read Comments