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गाँधी न सही गाँधी का ख्याल सही

सर झुकाकर आसमा को देखिये ...........
सर झुकाकर आसमा को देखिये ...........
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आज का वाकया हैरान करने वाला था ..कक्षा आठ के एक बच्चे से मैंने पूछ लिया की ‘बेटा आज किसका जन्म दिन है ‘, जवाब अत्यंत अप्रत्याशित था… मगर यहाँ लिखना जरुरी है .. उसने कहा …” वही गंधिया का जन्म दिन है“….किसी तरह से स्वयं को संयत किया क्योकि हमारे शिक्षा शाश्त्र में कहा गया है की “”बच्चे की कभी गलती नहीं होती…..””,

वहा और भी बच्चे थे कक्षा 5 -8 तक के अंग्रेजी माध्यम से लेकर सरकारी स्कुलो के .सबके जवाब बहुत चकित करने वाले और लहजा मजाक उड़ाने वाला ही था. ये क्रोध दिलाने वाली बात थी मगर मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं की. कुछ बताना चाहा पर बच्चो ने क्रिकेट खेलने को ज्यादा तरजीह  दी. गौर कीजिये की सबके विद्यालय बंद थे आज के दिन . वे इसे एक और रविवार समझ कर मना रहे थे .

मै अपने स्कूल के दिनों को याद करने लगा ..तब स्कूलों में 15  अगस्त, 26 जनवरी ,2 अक्टूबर ,5 सितम्बर ,14  नवम्बर पर अवकाश नहीं होता था बल्कि इन दिनों में स्कूल जाना अनिवार्य था और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे जिनमे हम बच्चो को कार्य दिया जाता था की उससे सम्बंधित विषय पर जानकारी लाये और क्लास में या मंच से बोले.. कई तरह के कार्यक्रम होते थे… और यकीन मानिये तब हमें पता होता था की इन तिथियों का क्या महत्व है ….दुःख के साथ सोचता हु की आखिर इन 15 -16 वर्षो में क्या हो गया .. की हमने अपने इतिहास की महान हस्तियों को मजाक का विषय बना दिया …?

आज स्थिति बहुत बदल चुकी है गाँधी जी को हमने बेहुदे कमेंट्स और घटिया चुटकुलों का विषय बना दिया है ,, आजके युवा भी आजादी की लड़ाई से जुडी तमाम घटनाओं से अनजान होने के कारण गाँधी जी के सम्बन्ध में नकारात्मक विचार व्यक्त करते है .. बुद्धिजीवी वर्ग ने गाँधी को इतना उलझा कर सामने रखा है की हम तय नहीं कर पाते की वास्तविकता क्या है..,स्कूलों ने गाँधी जयंती को रेस्ट डे बना दिया है

ऐसे में सवाल ये उठता है की क्या सरकार ये परिवर्तन नहीं देख रही है..? अगर देख रही है तो राष्ट्रीय दिवसों में गाँधी जयंती को शामिल करके कौन सी नौटंकी की जा रही है.. 15  अगस्त , 26  जनवरी के साथ 2  अक्तूबर को शामिल करके हम कौन सा ड्रामा कर रहे है इसे या तो बंद कर दो या उसके महत्व को समझाओ हमारी पीढ़ी को …


क्या गाँधी को राष्ट्रीय विचार धारा से हटाने का कोई षड़यंत्र  तो नहीं हो रहा ? हो सकता है की आज लोगो के लिए गाँधी अप्रासंगिक हो गए हो ऐसे में एक राष्ट्रीय दिवस के नाम पर ,राष्ट्रपिता की उपाधि के नाम पर ये अपमानजनक व्यवहार कही से भी उचित नहीं लगता .. गाँधी और उनकी नीतिया कितनी प्रासंगिक है आज के समय में ये आज पुरे विश्व को समझ में आ चूका है .. और हम इसे अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मना रहे है .. अगर ऐसा है तो 15  अगस्त,  26  जनवरी ,की तरह २ अक्तूबर का सम्मान हो अन्यथा ..इसे छुट्टी का दिन बना कर रखने से बेहतर है की सामान्य दिनों की तरह बना दिया जाये... क्योकि गाँधी बहुत सामान्य थे शायद तभी तो अलौकिक लगते है

गाँधी जी पर बहुत कुछ लिखा गया है मै उन्हें दोहराना नहीं चाहता क्योकि उनके कायल तो उनके विरोधी भी रहे .इस देश को यदि अपनी शर्तो पर विकास करना है और यदि एक शक्तिशाली भारत के साथ साथ शक्तिशाली भारतीयों का राष्ट्र नाना है तो आज नहीं तो कल हमें गाँधी जी के रस्ते पर जाना ही होगा … नहीं तो हम मिर लोगो का गरीब देश बने रहेंगे और इस रात की सुबह कभी नहीं होगी

इसी ख्याल से एक शायर की इन पंक्तियों को दे रहा हु इनमें हम गाँधी जी के महत्व को शायद समझ सके …

वो मुतमईन है की पत्थर पिघल नहीं सकता
मैं बेकरार हूँ आवाज के असर के लिए
गाँधी न सही गाँधी का ख्याल
सही

कोई सहारा तो है इस पहर के लिए

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