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24 सितम्बर , जब अयोध्या मामले पर उच्च न्यायलय का निर्णय सुनाया जायेगा,, एक तरह से तो यह एक लगातार चलती हुई न्यायिक प्रक्रिया का स्वाभाविक परिणाम है .जब बहस हुई है मामला बना है तो कुछ न कुछ निर्णय आयेगा ही.लेकिन दुखद रूप से सरकारी तंत्र और मीडिया लगातार ऐसा प्रचार कर रहे है प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से , मानो २४ सितम्बर को न्यायालय का निर्णय नहीं बल्कि प्रलय आने वाली है.लगातार अफवाहे उडाई जा रही है.. मुझे हसी तब आई जब एक अभिनेता ने अपनी फिल्म की रिलीजिंग को अयोध्या निर्णय के कारण टाल दिया.आप अंदाजा लगा सकते है की कैसा खौफ भरा माहौल बनाया जा रहा है .
सवाल ये है की ये सब बिना हंगामे के भी हो सकता है अगर हमारी मीडिया अपनी घी – मसाले के चक्कर में न पड कर आम आदमी की सहूलियत और दिक्कत के बारे में सोचे. ये भी सही है की इस मुद्दे की आड़ में काफी लोग राजनीतिक आग भड्कायेंगे लेकिन इस आग की तपिश को कम किया जा सकता है संयमित और अनुशाषित तरीके से जिम्मेदारी निभा कर. मीडिया की प्रवृत्ति एक गाल पे थप्पड़ मार कर दुसरे को सहलाने वाली बन चुकी है.. वो तो समझने से रही .लोग राशन – पानी , इत्यादी जरुरत की चीजे इकट्ठा कर रहे है मानो तीसरा विश्वयुद्ध होने जा रहा हो.. कभी – कभी लगता है मानो राजनीतिज्ञों से ज्यादा आम आदमी को भड़काने में मीडिया का गैरजिम्मेदाराना व्यवहार अधिक प्रभावी होता है
…खबरों को संयम से दिखाए क्योकि आम इंसान की भावना खून, क्षत -विक्षत शारीर पवित्र ग्रंथो के अपमान इत्यादि पर उद्वेलित हो जाती है. मगर पूरा तंत्र ही मानो आम आदमी को निशाना बनाता है , खबरों को बेचने के लिए ,राजनीती के लिए या फिर बाजार के लिए
कल मीडिया ये कहकर अपनी पीठ थपथपयेगा की अमुक खबर सबसे पहले उसके चैनल ने दी , केंद्र राज्य को और राज्य केंद्र को दोष देकर अपनी – अपनी पीठ ठोकेगा …….पर आम इंसान एक दुसरे को देख कर आँखों – आँखों में यही सवाल करेगा ……… ………….
आखिर 24 सितम्बर को क्या होगा ? आप का क्या ख्याल है ?
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