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अबकी सवनवा ना भाए हो राम ,
गाये हो राम .
सुनी रे अचरिया ले घुमेले बदरिया,
छोटकी मडईया के ढपले अटरिया,
पनिया के सोखते जाये हो राम .
अबकी सवनवा ना भाए हो राम .
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लोर भरल अंखिया में डूब गईल लोरिया ,
पेटवा के अगिया में जरी गईल निंदिया .
अब जनि सपना देखाई हो राम,
अबकी सवनवा ना भाए हो राम ,
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तुलसी जी सुखी गइनी,भूखे रोये गईया ,
रहिया भटक गईल सोना के चिरईया.
सोना के महलिया में जायी के राम,
अबकी सवनवा ना भाए हो राम ,
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बनी के मजूर पिया गईले विदेसवा,
जोहेली बाट धरी जोगिनी के भेसिया .
रहिया में नेहिया बिछाई हो राम,
अबकी सवनवा ना भाए हो राम.
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बेचीं- बेचीं खेत सब गईले सहरिया ,
भूल गइल गाँव-हाट-घाट के डगरिया .
ओही राहे सभे चली जाई हो राम ,
अबकी सवनवा ना भाए हो राम ,
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पिछला बरसिया ता बेटिया बिहाईल ,
बेचली जे खेतवा ता नकिया रखाईल .
अभिनो ना गवना हो पाईल हो राम,
अबकी सवनवा ना भाए हो राम.
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झुलवा हेराईल ,भुलाई गईल गितिया,
सखिया सहेलिया ना कौनो सुरतिया.
कईसे ऊ कजरी सुनाई हो राम,
अबकी सवनवा ना भाए हो राम ,
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राम जाने कईसे करजिया चुकाई,
खून बेचीं – बेचीं घर कबले चलाई.
मॉउरो महंग होत जाये हो राम,
अबकी सवनवा ना भाए हो राम .
गाये हो राम .
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सावन का मौसम यु तो बहुत मस्ती भरा होता है ,,प्रकृति नव श्रृंगार करती है ..तरो ताज़ा हो जाती है एक नए जोश के साथ …आसमान की रिमझिम फुहारों से एक मदमाती सी सुगंध उठती है … पर हमारे देश का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जिसके लिए सावन , फागुन, इत्यादि के कोई नए अर्थ नही होते .. सासों में कोई नई लय नही होती ..जीवन से लडती हुई कई ऐसी जिंदगियो के अनुभव हुए.. जो अपनी पूरी जिंदगी केवल आधारभूत जरूरतों को पाने की लडाई में ही लगा देते है ..
की उनका भगवान् अब आसमान से उतर कर आसमान तक जा पहुची इमारतो में रहने लगा है ..और वह उन्हें उनके किसी पिछले जन्म के पापो की सजा दे रहा है ….या कुछ और…….कितने ऐसे दृश्य आये सामने दिल्ली से गोरखपुर और बिहार के रास्तो में कई बार चाहा कैमरे से उनका चित्र खीचकर अपने लेख को और आकर्षक बनाऊ पर हिम्मत नही हुई ….जो मन में आया वह भोजपुरी के शब्दों में एक कविता के रूप में आया … वो आप सबके सामने है….
वैसे भोजपुरी का ज्यादा ज्ञान नही है इसके सिवा की यह एक बहुत मीठी और दिल को छू लेने वाली भाषा है……..
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