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एक पत्र सुपर ब्लागर (उस चुलबुली लड़की ) के नाम

सर झुकाकर आसमा को देखिये ...........
सर झुकाकर आसमा को देखिये ...........
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मै लगभग ३ महीनो से जागरण मंच पर नियमित नहीं हु….कुछ दिन पहले पता चला की मंच पर एक नई ब्लोगर आई है जो ब्लोगर ऑफ़ वीक भी चुनी गई तो जिज्ञासा हुई और २ बार मैंने आपके ४ ब्लॉग पढ़े ….. उनपर काफी प्रतिक्रियाये भी मिली आपको इसके लिए बधाईया और शुभकामनाये…… अब कुछ अपनी बात कहना चाहूँगा ….

अनीता जी आपके लेख बहुत उलझन में डालते है मुझे… समझ में ये नहीं आता की आपको बहुत मासूम इंसान कहू या चतुर ,, आप अपनी स्थिति में खुश है या दुखी.,,आपका दुःख का कारन स्त्री होना है या इसकी वजह पुरुष है …

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–एक तरफ आप गर्व के साथ अपनी भौतिक उपलब्धियों का बखान करते हुए ये दावा कर रही है की आज की नारी के गर्व करने योग्य सारी वस्तुए आपके कदमो में है तो दूसरी तरफ आप लगातार स्वयं को अकेली ,अबला , असहाय और अवसादग्रस्त और जाने क्या क्या कह कर पुरुषो को कोसे जा रही है …आप लगातार विलाप कर रही है की एक नारी होने के नाते आपको बहुत दुःख झेलने पड़े है आप पूरे नारी समाज को अपनी आड़ में दुखी शोषित और पुरुषो द्वारा भोग्या होने का विलाप कर रही है ….क्या आपका ये विश्लेषण पूर्ण और एकमात्र सत्य है? आप आग्रह कर रही है पाठको से की वे आपके दुःख और व्यथा को समझे …इस तरह आप किसीकी सहानुभूति पाना चाहती है ?? और क्यों??

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इसलिए नहीं की वे बहुत भौतिक संसाधन जुटा चुकी है बल्कि इसलिए की उन्होंने एक अनुकर्णीय और जिम्मेदार जीवन जिया है ..आधुनिकता को भौतिक लिप्सा पूर्ति का मार्ग नहीं बनाया है… इसलिए वे विलाप नहीं करती .हा जीवन का अकेलापन उन्हें भी सालता है पर अवसादग्रस्त नहीं करता … क्योकि नारीत्व उनके लिए मजबूरी नहीं शक्ति का प्रतिक है….

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अगर इसमें कुछ भी गर्व करने योग्य है तो ये बात साबित होती है की हमारे देश में स्त्रियों के साथ पुरुषो ने भी पूरी निष्ठां और समर्पण के साथ अपनी जिम्मेदारियों को निभाया है .

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नारी की बात तो दूर पुरुष का भी स्वतंत्र होकर अकेले जीवन जीना गुनाह है .. ये तथाकथित व्यक्तिगत भौतिकवादी स्वतंत्रता प्रेमियों के लिए गुनाह भले ही न हो पर ये एक सामाजिक गुनाह है क्योकि ये समाज के गठन के मूल पर प्रहार करता है…ये विचार यह साबित करता है की आप सामाजिक जिम्मेदारियों से पलायन करने वाले है… . ये सही है की नारी को ज्यादा परेशानी होती है ..पर ऐसा करने वाले पुरुषो को भी समाज में अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता … यह विचार हमारे समाज में मानक नहीं है.

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अगर वृक्ष की जड़ ये कहे की मै धरती के नीचे नहीं रहूंगी तो व्यक्तिगत रूप से भले ही ये उसकी अभिव्यक्ति लगे पर यह व्यावहारिक नहीं कहा जा सकता है ..

सृष्टि में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसकी सीमा या मर्यादा निर्धारित न हो ..चाहे वह मामूली सा कीट हो या फिर सर्वविजयी होने की कामना करने वाला मनुष्य .यह निर्धारण प्रकृति करती है और जब तक हम सीमा में रहते है सुरक्षित रहते है …पर हा ये भी उतना ही सत्य है की सभी की अपनी विशिष्टताए भी है जिनका प्रभाव उस सीमा के अन्दर ही रहता है …ये सीमाए वास्तव में वह अनुशाशन है जिसके अन्दर हम अपनी विशिष्टताओ का प्रयोग कर के अपनी प्राकृतिक सामाजिक जिम्मेदारियों को पूरा करते है …अब इस अनुशाशन को आप सीमा कहे या बंधन कहे …इससे बाहर जाने पर सजा मिलेगी ही चाहे वह पुरुष हो या महिला…

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घर चलाने से लेकर देश को चलाने तक में भारत की नारी जैसी मिसाले आपको नहीं मिलेंगी ..और सबसे महतवपूर्ण ये की हर जगह नारी ने अपनी संस्कृति और सभ्यता को गर्व के साथ प्रस्तुत किया है.. इसके लिए किसी ने भी नारी रूप में अपने जन्म का रोना रोकर पुरुष समाज को कोसा नहीं है बल्कि ये प्रतीत कराया है की हमारी संस्कृति में सीता से लेकर दुर्गा तक सभी रूप जीवित है .दुखद रूप से आप इसे नहीं समझ पाई.

मेंहर उस व्यक्ति को अपना कष्ट सबसे बड़ा लगता है जो इसे सार्वजानिक करना चाहता है ....पर यकीं मानिये आपसे बहुत अधिक दुःख में कष्ट में पड़े लोग है पर उन्होंने अपने अथाह कष्ट को मार दिया………………………

जरुरतमंदो में खुशिया बाट कर ……….

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अनीता जी और ऐसे कई लेखक है जिनकी लेखनी में क्रांति कर देने वाली ताकत है वे शब्द की धनी है और उनकी कलम में जबरदस्त आकर्षण क्षमता है … मै न तो नारी स्वतंत्रता विरोधी हु और न ही पुरुषत्व का ढिंढोरा पीटने वाला व्यक्ति हु .मै बहुत सामान्य व्यक्ति हु …जिसे लेखन का ज्यादा ज्ञान नहीं है पर हा ये जरुर चाहता हु की ऐसे मंचो पर जो भी अभिव्यक्त हो वह समाज को और मजबूत करने वाला , आशा जगाने वाला और सकारात्मक परिवर्तन करने वाला हो…..सभी लेखक अपनी सामाजिक और राष्ट्रीय जिम्मेदारियों को समझते हुए लिखे….अनीता जी आपमें एक शानदार लेखिका है ….)

शुभकामनाओ सहित ,

निखिल पाण्डेय

इस पत्र के माध्यम से जागरण मंच के सभी पाठको को स्वतंत्रता दिवस पर शुभकामनाये.

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