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मेरी बेटी

सर झुकाकर आसमा को देखिये ...........
सर झुकाकर आसमा को देखिये ...........
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मेरे एक विवाहित मित्र है जो पहली बार दिल्ली गए… वे थोड़े शर्मीले और ग्रामीण परिवेश से सम्बंधित है तो दिल्ली का समाज देखकर वे आश्चर्यचकित रह गए,,,हुआ यु की हम साथ में ही नेहरु प्लेस घुमने गए .. रात के लगभग १० बज रहे थे… और चहल पहल थी जब हम बाहर निकले तो एक जोड़े को प्रेमलाप में लीन देखा .मानो वे अपने घर के कमरे में हो… आने जाने वाले उन्हें देख कर हस रहे थे पर उन्हें कोई फर्क नहीं.. था शायद उन्हें सच्चा प्रेम हो चूका था…खैर ..ऐसे और भी ३-४ जोड़े थे जो दुनिया से दूर अपने सपनो की दुनिया में घूम रहे थे… मेरे मित्र के लिए ये सब अलौकिक सार्वजनिक दृश्य था.. उनके मुह से पहला प्रश्न ये ही उठा की यार इनके माँ बाप ..बेचारे….देखेंगे ये सब तो आत्महत्या कर लेंगे….? मैंने हा में सर हिलाया …

थोड़ी देर बाद वे कहने लगे ” न जाने मेरी बेटी के बड़े होने तक ये समाज कितना नंगा हो चूका होगा… ………?”मै तो अभी से उसकी बाते सुनके घबरा जाता हु …..तो उनसे हुई वार्तालाप से ही ये कविता की पंक्तिया बनी.. जिन्हें आपके सामने रख रहा हु…..

मेरी बेटी

……………………………..

मेरी बेटी…….

PurpleModGirl6sm

नव फैशन युग की बाला है ,

तन से वसन घटाती जाती .

काया के प्रति अति संवेदित ,

भोजन से घबराती जाती.

जीरो फिगर की इच्छा में,

अब तो व्याकुल रहती है ,

कैसी खिले फूल सी थी ,

दिन-प्रतिदिन कुम्भ्लाती जाती.

तीव्र गति से भाग रही है,

सब सीमाए लाँघ रही है,

पश्चिम की धुन में दीवानी,

डांस क्लबो में जाग रही है .

नारी क्रांति का बिगुल बजाती ,

नारी को ही खो बैठी .

खोज रही है जाने क्या वो ,

जाने किससे भाग रही है .

उसका अल्हड़पन खोया,

खोई मासूम शरारत ,चंचलता.

बचपन खो बैठी इसी शोर में,

खो दी तन की कोमलता .

पश्चिम के नंगेपन को ,

आज खुलापन कहती है,

इसी खुलेपन में खो बैठी,

नारी मन की शीतलता .

बोली बदली, रूप रंग ,

खान पान सब बदल दिया,

नारी की परिभाषा बदली ,

रूप प्रकृति का बदल दिया .

अंधी अनजानी गलियों में.

अपने को उलझाती है ,

अब स्वयम प्रकृति नव जीवन को,

जनने से घबराती है .

आज नए बाजारवाद की ,

धुन में वो मतवाली है ,

अंग्रेजी में मोबाइल पर ,

देती फ़िल्मी गाली है ,

सिगरेट ,जुए डांस क्लबो के,

नए शौक है उसके अब ,

समझ रही है खुद को वो ,

सबसे अलग निराली है .

पिता को पप्पू कहती है , 62002

खुद को माडर्न नव बाला ,

नाच रही है गा-गा कर अब,

पप्पू कांट डांस साला ,

जनरेशन गैप बताती है,

नए तर्क समझती है …

नए लक्ष्य बन गए है उसके..

नई राह पर जाती है ….

.अन्यथा पुरुषो के अन्तःवस्त्र के विज्ञापनों के लिए नारी को नग्न करने से पहले ये बाजार १०० बार सोचता … हम जिस तरह से आंख मूंदे इस भौतिक दौड़ में भाग रहे है .. वह राष्ट्र की आत्मा को नष्ट कर देगी…ये बाजारवादी सोच नारी के नारीत्व को नष्ट कर देगी….. और अगर ऐसा हुआ तो हम अपना अस्तित्व खो बैठेंगे , .. ये समझना होगा की भारत और यूरोप की आत्मा में जमीं आसमान का फर्क है …..वो पूरी दुनिया को यूरोप ,अमेरिका बनाना चाहते है ...आप क्या चाहते है……???, अभी जारी है…… ]

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