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रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल

सर झुकाकर आसमा को देखिये ...........
सर झुकाकर आसमा को देखिये ...........
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पिछले कुछ दिन इन्टरनेट की दुनिया से दूर वास्तविक दुनिया में भ्रमण करने का मौका मिला मेट्रो सिटी से लेकर देश के बहुत पिछड़े ग्रामीण इलाके भी देखे . भिखारियों से नजर चुराकर कुछ दुरी से निकलते लोगो को देखा तो. स्वर्गिक दृश्य प्रस्तुत करते सिटी मॉल्स भी देखे.. जो नरक की सजा पाए हुए लोगो को मुह चिढ़ा रहे थे…

काफी कुछ देखने सोचने में ये समय बीता …दिमाग को पागल कर देने वाली विषमता. सोचो तो कितनी समस्याए चारो तरफ है , नक्सलवाद, आतंकवाद , गरीबी, महंगाई, पूरी व्यवस्था को नियंत्रित करता पूंजीवादी साम्राज्यवाद और इसके कारण जन्मा लूटतंत्र और भ्रष्ट तंत्र हर तरह की सामाजिक, राजनितिक ,आर्थिक ,धार्मिक समस्याओ से लड़ता हुआ देश उसकी समस्याए और उनपर ट्रेनों ,चौराहों, नुक्कड़ो पर लगातार चर्चा करते हुए हम लोग…. ..

5 दिन हुए जागरण मंच को देखा तो जानकारी हुई की टॉप -20 लेखको में हम भी शामिल है… अच्छा लगा पर कुछ लिखने का जी नहीं हुआ …इसलिए शांत रहा.

जागरण और ऐसे तमाम मंचो ने देश के बुद्धिजीवी वर्ग में एक अनोखी ऊर्जा भर दी है अपने विचारो की अभिव्यक्ति और उसपर तमाम तरह की चर्चाओ ने सामान्य वर्ग के विचारको में मानो जबरदस्त उत्साह भर दिया है . हम सभी इस वैचारिक क्रांति के आन्दोलन में अपनी अपनी क्षमताओ के साथ कूद पड़े है.इसमें दो राय नहीं है की इस सुविधा के दूरगामी प्रभाव पड़ेंगे .आज नहीं तो कल..और मेरा यह विश्वास है की इससे जुड़े अधिकांश लोगो का उद्देश्य टॉप ब्लोगर बनना नहीं बल्कि इस वैचारिक मंथन में अपना अधिकाधिक योगदान देना है …

हर व्यक्ति बहुत आसानी से निडर होकर अपने विचारो को पुरे देश के सामने रख सकता है और उसपर चर्चा कर सकता है . घरो की सामान्य बातो से लेकर राष्ट्र जीवन से सम्बंधित जटिलतम समस्याओ पर हमारी बेबाक चर्चाये होती है और हम सभी एकमत में यह विचार प्रकट करते है की परिवर्तन होना चाहिए..

जब आँख से ही न उतरा तो फिर लहू क्या है. वजह साफ़ है की आज क्रन्तिकारी ,सुधारक विचार तो हर तरफ दीखते है पर परिवर्तन करने वाले सामने नहीं आते अपनी जिम्मेदारियों को कलम और कीबोर्ड तक ही सीमित रखना चाहते है .

समस्याओ को उठाने के साथ ही हमें उनके समाधान पर भी अब चर्चा करनी होगी ,और खुद से पूछना होगा की हम स्वयं इसके लिए कब और कैसे प्रयास करेंगे ?

हमलोग डर और अविश्वास के शिकार है.अविश्वास अपनी कर्मठता पर से.और डर अकेले शुरुआत करने से. परिवर्तन के प्रति अविश्वास और कुछ नहीं बल्कि अपने नाकारापन को छुपाने का बहाना है हममे से कोई भी हो यदि हम मात्र बौधिक बनकर संतुष्ट है और इस आशा में है की कोई अर्जुन हमारी गीता से प्रेरणा लेकर उस परिवर्तन के ध्येय को पूर्ण कर दे तो यह हमारी भूल है और हमारा बौधिक ज्ञान मात्र सजावटी वास्तु से ज्यादा नहीं.

समग्र क्रांति और सम्पूर्ण परिवर्तनही हमारा उद्देश्य होना चाहिए और ये समग्र क्रांति किसी एक केंद्र से नहीं होगी बल्कि इसके हजारो ,लाखो ,करोणों केंद्र हो सकते है ये भी हो सकता है की इस दिशा में हम सबके अलग-अलग व्यक्तिगत प्रयास ही वह अलग-अलग केंद्र हो . .. पर हा ये तय है की प्रयास सभी को करने होंगे .

इस समर में हम कृष्ण की तरह केवल मार्गदर्शक की भूमिका तक सीमित नहीं रह सकती है हमें ही अर्जुन का चरित्र भी निभाना पड़ेगा ..

मात्र उपदेशक बनकर हम इस क्रांति का सकारात्मक परिणाम नहीं प् सकते. मेरा ऐसा मत बिलकुल नहीं है की सभी नेत्रित्वकर्ता बन जाये या नेतागिरी करने लगे.या घर-बार त्याग कर समाज सुधारक बन जाये. बहुत पहले किसी से सुना था की हम सब चाहते है की भगत सिंह और विवेकानंद फिर जन्म ले…… मगर दुसरे के घर में …अगर हम इन्ही ग्रंथियों में बंधे है तो सारे मंच व्यर्थ है .

ग़ालिब ने कहा था…

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल ..

जब आँख से ही न उतरा तो फिर लहू क्या है ..

आप क्या कहते है ?

मेरा प्रश्न केवल ये है की क्या आप इस वैचारिक मंच से कोई सकारात्मक परिणाम पाना चाहते है या इसकी उम्मीद रखते है ? यदि हा तो किस तरह ?

इसमें आप स्वयं किस हद तक सक्रिय योगदान कर सकते है ,या कर रहे है,या करना चाहते है .?

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