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यदि भारतीय समाज का सूक्ष्म अवलोकन करे तो उसमे अजब सा आकर्षण दीखता है , यह
अनोखा है ,भारतीय समाज बेहद सहज, सामान्य ,स्थिर और कोमल दीखता पर पर
वास्तव में यह अत्यंत मजबूत , मौलिक और निरंतर गतिशील है …यह विशेषता इसलिए
है क्योकि हमारे समाज में और संस्कृति में ऐसे तत्त्व उपस्थित है जो समय समय
पर अनुकरणीय व्यावहारिक उदाहरण प्रस्तुत करते रहते है. ..जो हमें प्रेरणा देते
है उत्साह देते है और गतिशील रखते है
भारतीय समाज अनेको महान दिव्य चरित्रों से भरा पड़ा है .. इसमें जो व्यक्तित्व सबसे
श्री राम चन्द्र जी का चरित्र है .राम
भारतीय साहित्य का ही नहीं बल्कि भारतीय जन जीवन का सबसे महतवपूर्ण अंग
है..कही उन्हें एक अवतारी दिव्य आत्मा कहा गया है तो कही सामान्य पुरुष मानकर
वास्तव में राम भारतीय समाज का आधार भी
है और शिखर भी ,वे प्रारब्ध भी है और लक्ष्य भी.
राम की बात हो और तुलसी दास जी का जिक्र न हो यह तो असंभव ही है ,तुलसी रामचरित
गा कर अमर हो गए और राम को उन्होंने भारतीय समाज के घर -घर में पंहुचा दिया
…विदेशी साहित्यकार और आलोचक तक रामचरित मानस के प्रभाव पर आश्चर्य व्यक्त
करते है ,,,यह विश्व का सबसे ज्यादा प्रभावी ,सम्मानित और व्यापक चरित काव्य है..तो
कुछ तो बात है राम के व्यक्तित्व में जिसने उन्हें प्रति दिन स्मरणीय बना दिया है और राम
चरित मानस विश्व में सबसे ज्यादा घरो में पाई जाने वाली पुस्तक के रूप में प्रसिध है,
राम धरती पर अवतरित सभी दिव्य चरित्रों से अलग है , अन्य चरित्र जहा दुनिया के
कष्टोंसे घबराकर उनके निदान के लिए तप और सामाजिक माया मोह से दूर होकर एक
प्रकार का पलायनवादी व्यव्हार प्रस्तुत करते है और ज्ञान प्राप्ति के बाद अलौकिक चरित्र
बन कर सामने आते है ,तो दूसरी तरफ राम अपने उच्च चरित्र से सभी जिम्मेदारियों को
निभाते हुए एक अनुकरणीय व्यक्तित्व स्थापित करते है . एक पति ,पुत्र,पिता राजा,
प्रशासक …सभी रूपों में वे अनुकरणीय है . राम कही उपदेश नहीं देते कोई
सिद्धांत नहीं बताते ,वे मात्र कर्म करते है और ऐसे ही कर्म करते है जो समाज को
मजबूत , सुरक्षित और गतिशील बनाने वाले है .
हम सभी जानते है की भारत गावो में बसता है ,और यह भी सबसे बड़ा सत्य है की
भारत केगावो में राम बसते है , या यु कहे की सियाराम में ही हमारा भारतीय
यहाँ मैंने सियाराम शब्द का प्रयोग किया है ..यह शब्द मात्र नहीं बल्कि
भारतीय समाज की वह रीढ़ है जो पुरे ढाचे को संभाले हुए है . राम सीता मिलकर वह
आधार देते है जिस सम्बन्ध पर पूरा ताना बाना खड़ा है, यह विवाह सम्बन्ध है जो आज
भी हमारी सबसे बड़ी विशेषता है या यु कहे सभी विशेषताओ का मूल है यह स्त्री पुरुष का
अलौकिक मिलन है जिसका आधार कोई अनुबंध, या भौतिक सुख न होकर एक
सामाजिक व्यवस्था और सामाजिक जिम्मेदारी है यह दो कुटुम्बों का भी मेल है ,और यही
से शुरुआत होती है प्रेम समर्पण, विश्वास , संयम ,सम्मान, अनुशाशन, त्याग, नैतिकता,
हम अपने नवदम्पत्तियो को राम सीता की छवि मानकर
उनसे यह अपेक्षा करते है की समाज की उन्नति और सुरक्षा के लिए वे जीवन पर्यंत
राम सीता के सामान ही उच्च मूल्यों का अनुकरण करेंगे. और राम सीता का जीवन
अनुकरणीय है भी ,उन्होंने ने एकदूसरे को दिव्य बना दिया .
राम समस्त मानवीय भावनाओ को प्रदर्शित भी करते है.वह केवल योगी नहीं है ,,पर वे
की सबसे बड़ी
विशेषता है , यह राम का ही व्यक्तित्व हो सकता है जो शबरी के जूठे बेर खा सकता है,
केवट से विनती कर सकता है , सुग्रीव से मित्रता कर सकता है रावन से भी ज्ञान की प्राप्ति
वास्तव में
यह चरित्र अनोखा है ,आकर्षक है ,अनुकरणीय है.और सबसे बढ़कर प्रासंगिक भी है
क्योकि बाजारवादी साम्राज्यवादी आसुरी प्रवृत्तिया आज फिर हमारी ओर घात लगाये बैठी
है और आह्वाहन करना है उसी मर्यादा पुरुषोत्तम को जो आज भी हमारे युवाओ के मस्तिष्क
में संचित है.उनकी रक्त शिराओ में गतिमान है .. उनका आह्वाहन करना आज की
है , बाहर की जलन बहुत बढ़ चुकी हमें रामराज्य की शीतल छाया चाहिए ……………
उठहु राम भंजहु भवचापा , मेटहु नाथ जगत परितापा
जन्म से लेकर मृत्य के समय तक राम का नाम भारतीय संस्कारो का अभिन्न अंग है ये
राम नाम की ही महिमा है और कही न कही रामराज्य की आदिकालीन अनुभूति हमारी
स्मृति में शेष है जिसके बल पर आज भी तमाम वैश्विक चुनौतियों ,प्रलोभनों से लड़ता हुआ
हमारा भारतीय समाज अपने गौरव के साथ पूरी शक्ति और सम्मान के साथ अडिग खड़ा है ………………
तभी तो तुलसी दास जी ने कहा है …
सकल सुमंगल दायक ,रघुनायक गुन गान,
सदर सुनही ते तरही भव सिन्धु,बिना जलयान
क्या ऐसा नहीं लगता की राम और सीता को हमें अनुकरणीय बनाना था पर हमने उन्हें अलौकिक और आराध्य बना कर अपनी पहुच से दूर कर लिया ………… ?
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