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सावधान ये बौद्धिक आतंकवाद है …..

सर झुकाकर आसमा को देखिये ...........
सर झुकाकर आसमा को देखिये ...........
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सावधान हो जाइये उनसे , वो तेजी से आ रहे है हमारी तरफ ,कहने को वे

मुट्ठी भर ही है मगर, शक्तिशाली है , सत्ता के स्रोत इनके हाथ में है प्रचार

माध्यमो पर इन्ही का कब्ज़ा है, ये बाजारवादी उपनिवेशवाद के आक्रमण

ये बौधिक आतंकवादी है और इनके

निशाने पर है हमारा शांत ,सुखी, संतुष्ट, और शक्तिशाली सामाजिक

ढाचा…….

जी हा मै बात कर रहा हु आयातित विचारो के प्रवाह में अपनी जमीं से

जो चिल्ला चिल्ला कर हमें

आदेश दे रहे है की हम क्या खाएकैसे रहे ,क्या पहने और कैसे जिए ….

# ये चाहते है की हम अपनी ताजी रोटियो को त्याग दे और उनका कई

दिन पुराना बासी नुकसानदायक मगर कौशल से सजाया पैक पिज्जा,

बर्गर खाए…

# ये चाहते है की हम अपने सयमित, समर्पित ,संगठित और अनुशाषित

पारिवारिक परिवेश को त्याग कर आधुनिक खुलेपन का प्रतीक लिविंग

रिलेशन , होमो सेक्सुँलिटी और ऐसी ही मानसिक रूप से दिवालिया

दुनिया में जिए ,..

# ये हमारे पारंपरिक और मजबूत “ सर्वे भवन्तु सुखिनः….” की भावना

यूस एंड थ्रो…” का

जीवन दर्शन सिखाना चाहते है …

# ये नर रुपी जानवर नारी को देह बनाकर उसे बाजार की शोभा बना देना

चाहते है क्योकि वे हमें इंसान के रूप में स्वीकार नहीं करते बल्कि मात्र

उनके उत्पादों का उपभोक्ता बनाकर रखना चाहते है …

# वे चाहते है की भारतीय नारी का विकास उनके सिद्धांतो के अनुरूप हो

,, वह अपने पारंपरिक भारतीय परिवेश को आग लगाकर दुनिया के

सामने नग्न हो जाये और उनके उत्पादों का सबसे बड़ा प्रचारक बन जाये

.. उसकी देह उत्पादों के कवर पर सजने की वास्तु बन जाये ….और वह

अपने आपको विकसित नारी समझ कर खुश रहे …

# वे एक बार फिर यह जाता रहे है की हमारी एकता हमारे लिए खतरनाक

है ,हमें बात जाना चाहिए धर्म जाती क्षेत्र,लिंग के नाम पर ..और हम बटे

जा रहे है……….अंग्रेजो की तरह वे भी आज हमें चिल्ला चिल्ला कर ये

एहसास दिला रहे है की हम अपनी स्थिति में खुश नहीं है ,दुखी है ,

परेशान है, पिछड़े है अज्ञानी और दकियानूसी है ..और वे ही हमें अपने

पश्चिम से आयातित विचारो से ज्ञान का प्रकाश भरने वाले त्राता है .

# वे उस चार्वाक के दर्शन को हमारे लिए उचित और आधुनिकता का

प्रतीक बटा रहे है जिसे अनुपयुक्त मान कर हमने हजारो वर्ष पहले त्याग

दिया था …..पर आज हम अन्धो की तरह उनकी हा में हा मिला रहे है ..

…………..और दूसरी तरफ हम कमजोर पड़ते जा रहे है

उनके शोर को सच मानते जा रहे है नपुन्सको की तरह सवयम

को ओछा, पिछड़ा और उन्हें बौधिक पथप्रदर्शक मान कर समर्पण करते

जा रहे है ,….जिसदेश में आज भी युवा विवेकानंद के सर्वधर्म सम्मलेन

की यात्रा को अपनी सांस्कृतिक विजय पताका के रूप में बता कर गर्व का

अनुभव करते है वे स्वयं अपने देश अपनी संस्कृति अपनी सामाजिक

हम उन मुट्ठी भर

उपभोक्तावादी विचारको से क्यों नहीं कहते की हम सुखी है , मजबूत है

,हम अपने सामाजिक परिवेश में संतुष्ट है हमारा समाज समृद्ध है

,,आंकड़ो की बाजीगरी हमारे विश्वाश को नहीं डिगा सकती ……भाषा,

हम सक्षम है अपना

विकास करने में .. गाँधी जी ,विवेकानंद ,भगत सिंह ,डॉ.ए.पी.जे. अबुल

कलाम,कल्पना चावला , सुनीता विलियम्स को अपना आदर्श मानने

वालो ,अपने आदर्शो के विचारो से प्रेरणा लो ,,खोखले आदर्शवादी मत

बनो …बाजार से आयातित विचारो को जवाब दो …ये जवाब कैसे देना है

दाव पर आने

वाली पीढ़िया है …….जो अपने खून मेंहमारी परंपरा और संस्कृति की

शीतलता लेकर उत्पन्न होंगी पर जब आँख खोलेंगी तो सामने की

बाजारवादी भोगवादी दुनिया उन्हें भ्रमित कर उनका दम घोट देगी उन्हें

मानसिक रूप से विक्षिप्त कर देगी .

आइये उन्हें जवाब दे ……………

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