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हिसाब देने की कृपा करे , मंत्री जी ?

सर झुकाकर आसमा को देखिये ...........
सर झुकाकर आसमा को देखिये ...........
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पिछले दिनों प्रधानमंत्री जी ने अपने मंत्रियो ,सांसदों तथा राज्यों के मुख्य मंत्रियो के लिए एक निर्देश जारी किया जिसमे उनसे अपने आर्थिक क्रियाकलापों में पारदर्शिता बरतने तथा ईमानदारी से काम करने के बारे में कहा गया ,और उनसे अपने सगे संबंधियों तक के आर्थिक क्रियाकलापों की जानकारी देने की बात कही ….

चुकि प्रधानमंत्री ने स्वयं प्रत्येक मंत्री को संबोधित पत्र में अपने हस्ताक्षर किये थे ,अतः स्पष्ट है की वे भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुकी जनप्रतिनिधियों की छवि से चिंतित है . कहा जा रहा है की प्रधानमंत्री और गृहमंत्री स्वयं अपने मंत्रियो तथा राज्यों के मंत्रियो पर निगाह रखेंगे… अब अगर विचार करे तो ये एक ईमानदार व्यक्ति की सराहनीय शुरुआत लगती है और क्योकि प्रधानमंत्री ने स्वयं दिलचस्पी ली है तो मुद्दा गंभीर ही लगता है यदि उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सरकार वास्तव में गंभीर है तो ये बहुत महत्वपूर्ण पहल है.

लेकिन यही से सवाल उठने लगते है …..


# ये पहल तो बहुत पहले ही की जानी चाहिए थी, क्या अबतक भ्रष्टाचार को गंभीर मुद्दा नहीं माना जा रहा था ?

# द्वितीय प्रशाशनिक सुधार आयोग की शिफारिशे अभी ठन्डे बस्ते में क्यों पड़ी है ? उन्हें लागु करने में क्या अडचने है ?

# प्रधानमंत्री ने जो आचार संहिता बनाई है उसे बाध्यकारी क्यों नहीं बनाया .. अनुरोध और उपदेश से क्या भ्रष्टाचार पे कोई लगाम लग सकेगी ?

# अभी संसद में लगभग २०० से ज्यादा सांसद धनकुबेर है ,इनमे सबसे ज्यादा १३८ कांग्रेस में ,५८ भाजपा में ,१४ समाजवादी पार्टी में ,१३ बसपा में है. सरकार सभी स्तर के जनप्रतिनिधियों की संपत्ति का पूरा ब्यौरा जनता के सामने रखने का दबाव डालने के लिए गंभीर क्यों नहीं होती ?

# सबसे महत्वपूर्ण सवाल ये है की यदि किसी मंत्री को वित्तीय अनियमितता में लिप्त पाया गया तो क्या कार्यवाही होगी ? क्योकि बिना ये बताये सारी कवायद उपदेश मात्र से ज्यादा नहीं होगी .


वास्तव में भ्रष्ट प्रशाशन और भ्रष्ट सरकार किसी भी राष्ट्र का सबसे अधिक अहित करती है क्योकि ये दीमक की तरह उसे अन्दर से खोखला कर देते है . ये जनता के परस्पर विश्वास ,सम्मान व सहयोग की भावना को मार देते है .इनका प्रहार जन -भावनाओ पर होता है.तथा यह आम व्यक्ति को भी अवसरवादी तथा उसके दृष्टिकोण को संकुचित कर देती है ..

शिक्षा , स्वास्थ्य ,विकास ,इत्यादि चीज़े ऊपर से छन कर नीचे भले ना पहुचे पर भ्रष्टाचार ऊपर से छन कर बहुत तेज़ी से नीच पहुचता है अतः भ्रष्टाचार की इस पाइपलाइन को ही काटना होगा .

मधु कोड़ा इसका सबसे ताजा उदाहरण है . प्रधानमंत्री जी व्यक्तिगत रूप से ईमानदार व्यक्ति है इसमें कोई संदेह नहीं है अब उनके पास ये मौका है की वे एक शशक्त प्रशाशक का रूप दिखाए और जनता में ये विश्वास बना दे की वे कमजोर प्रधानमंत्री नहीं है ..क्योकि जो मुद्दा उन्होंने छेड़ा है उसमे अधिक गंभीरता दिखाना शायद उनकी अपनी पार्टी को ही रास ना आये. क्योकि नेता और धन में वही सम्बन्ध बन चुका है जो शेर और मांस में


आपसे……………..

जनप्रतिनिधियों में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए ये पहल कारगर हो सकेगी या नहीं…….?

क्या हम कह सकते है की “देर आये दुरुस्त आये” ?

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