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वो पढना चाहते है मास्टर साहब

सर झुकाकर आसमा को देखिये ...........
सर झुकाकर आसमा को देखिये ...........
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२ दिन के लिए लखनऊ केंद्रीय विद्यालय में जाना हुआ. प्राथमिक शिक्षा के प्रति जानने की उत्सुकता रहती है इसलिए स्कूल में कक्षों को देखने लगा …कक्षा १ में जब मै गया तो दंग रह गया देखकर दीवारों पर बच्चो ने सुन्दर चित्रों से सजाया था . साथ में कुछ विषयो पर निबंध भी थे .

ये सब चीज़े ये साबित कर रही थी की शिक्षको ने जिम्मेदारी से काम किया है ..फर्क ये था ,की प्राथमिक पाठशालाओ के कक्षा ५ के बच्चो से तुलना की जा सकती है .

बी.एड की स्कूल टीचिंग के दौरान प्राथमिक पाठशालाओ को देखने और समझने का मौका मिला था . जिलो की प्राथमिक पाठशालाओ से जमीं आसमान का फर्क दिखाई दिया . इस फर्क का कारण ढूंढने में ज्यादा सोचने की जरुरत नहीं…

# सबसे बड़ा कारण सरकारी प्राथमिक पाठशालाओ में अध्यापको में शिक्षण के प्रति अरुचि दिखाना है , वे मात्र खाना-पूर्ति करते है , शिक्षा को आराम की जिंदगी गुजारने का साधन मानने की प्रवृत्ति दिखाई देती है. इसमें प्रमुख कारण ये है की..

# स्नातकोतर , phd इत्यादि करने के बाद जब शिक्षार्थी प्राथमिक पाठशालाओ में जाते है तबतक उनका सारा उत्साह ठंडा पड़ जाता है ,

# वह जिम्मेदारी से काम नहीं करते क्योकि उन्हें यह काम उनकी योग्यता के अनुरूप नहीं लगता . इसका नुक्सान उन निर्दोष बच्चो को उठाना पड़ता है जो पढना चाहते है .

# इसके अलावा धन की कमी भी एक महत्वपूर्ण कारण है ,

बहरहाल शिक्षको की और धन की समस्या ,सरकार की कमी है पर इसका नुकसान देश के भविष्य को उठाना पड़ रहा है .

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प्राथमिक स्तर पर सबसे महत्वपूरण होता है बच्चो की ज्ञानेन्द्रियो का विकास करना और उन्हें गतिशील रखना . अगर शिक्षक चाहे तो ये काम वे बहुत आसानी से कर सकते है इसके लिए बहुत धन की आवश्यकता नहीं है . क्योकि बच्चो को प्रेरित करना ज्यादा कठिन नहीं होता बस उनके साथ उचित सहयोग किया जाये

स्कूल टीचिंग में मैंने देखा की इन गरीब बच्चो में कई ऐसे थे जिनमे बहुत उर्जा और उत्साह था .और मौका मिलने पर वे अच्छा कर सकते थे. विशेष रूप से लडकियों में पढाई के प्रति बहुत उत्साह देखा .

# शिक्षको को चाहिए की छात्रो की रूचि को जानने का प्रयास करे और उसे विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करे .

# किताबी कोर्स पूरा करने के अलावा उनके बहुमुखी विकास में ध्यान दे .

# अध्यापको को ये ध्यान रखना चाहिए की उनके हाथ में देश का भविष्य है .

# प्राथमिक विद्यालय मात्र दोपहर के भोजन ,नाश्ते और खानापूर्ति तक ही सीमित न रह जाये.

# प्राथमिक शिक्षा रचनात्मक होनी चाहिए इसमें बच्चो को कम से कम किताबी ज्ञान दिया जाये .

# शिक्षको को प्रेरणा दी जाये की वे अपने कौशलो से गरीब विद्यार्थियों में भी उत्साह और रचनात्मकता बढ़ाये ताकि उनके भविष्य की नीव तैयार हो सके .

हमारी दोषपूर्ण व्यवस्था से देश का बहुत नुकसान हो रहा है . हमने स्कूल तो खोल दिए है पर ये जानने की जहमत नहीं उठाई है की उनमे क्या हो रहा है उनके स्तर में कितना सुधार हो रहा है. शिक्षको की अध्यापन के प्रति गैर जिम्मेदारी उस उद्देश्य को पूरा नहीं होने देगी जिसके लिए सरकार शिक्षा पर जोर दे रही है . हमारी व्यवस्था मात्र पुतले तैयार कर रही है .

सारी समस्याए अपनी जगह है मगर शिक्षक जो लापरवाही बरत रहे है वह अक्षम्य है ….

क्योकि दाव पर आने वाली पीढ़िया लगी हुई है ….

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