Menu
blogid : 150 postid : 43

आम का पेड़ और लोकतंत्र

सर झुकाकर आसमा को देखिये ...........
सर झुकाकर आसमा को देखिये ...........
  • 55 Posts
  • 992 Comments

4  महीने  पहले  की  बात  है  घर  के  बाहर  लगा  हुआ  आम  का  एकमात्र  पेड़  गिर  गया,  दुःख  पूरी

कालोनी  को  था  क्योकि  हर  साल  ३००-४००  आम  मिलते  थे  जिन्हें  कालोनी  वालो   ने भी  चखा

था और सभी का यही कहना था  की  इतना  टेस्टी  बाजार का आम  भी  नहीं  लगता , मेरे  कई  मित्रो

ने  बहुत  तारीफ  की,  जब वह  पेड़  गिरा  तब सभी  लोग  बड़े  दुखी  मन से आये  सबको  लगा

शायद  हमने  उसे  कटवा  दिया,

मुझे  बहुत  दुःख  हो  रहा  था  क्योकि  १०  वर्षो  से  मै  हमेशा  उसमे  पानी  देता  रहता था  और

उसकी  पत्तियों  पर  पानी  की  रुकी  हुई  बुँदे  मुझे  इतनी  पसंद  थी  की  मै  पुरे पेड़  को  ही  नहला

देता  था  क्योकि  वह  मात्र  १२-१५  फीट  ऊचा  आम्रपाली  प्रजाति  का  था. बहरहाल  पेड़  गिरा  क्यों

था  ये  भी  बता  दू ,  असल  में  उसकी  जड़  में  दीमक  लग  गया  था  जिसने  उससे  अन्दर  से

खोखला  कर  दिया  था  और  एक  फलदार  छायादार  और  घर  की  पहचान  बना  हुआ  सजीव  पेड़

गिर  गया . दुःख  इस बात  का  था  की  वो  पेड़  नहीं   रहा  पर  ज्यादा  दुःख  इस  बात  का  था  की

कई महीनो  से  माँ  के  कहने  के  बावजूद  हमने  लापरवाही  की  और  पेड़  में  कीटनाशक  दवा  नहीं

डलवाई  जिसका  परिणाम  ऐसा  हुआ ……

बहरहाल  मै  अब  भूमिका  से  अपने  मुद्दे  पर  आता  हु …आप  भी  सोच  रहे  होंगे  की क्या  आम

मुझे  पेड़  लेकर  बैठ  गया ..असल  में  इस  आम  के  पेड़  में  बड़ी  खास  बात  थी…..

एक  दिन  ऐसे  ही  मै  सोच  रहा  था  तो  मन  में  ही  तुलना  करने  लगा ,,,  हमारा लोकतंत्र  भी  तो

ऐसे  विशाल  वृक्ष  की  तरह  ही  तो  है  जिससे  हमें  आसरा  , सहारा, सुरक्षा  और  सभी

आवश्यकताए  पूरी  करने   की  सुविधाए  मिलती  है  …

*  जरा  सोचिये  क्या  अपने  चरम  पर  पहुचा  भ्रष्टाचार  उसी  दीमक  की  तरह  नहीं  है जो  हमारे

इस  वृक्ष  को  खोखला  करता  जा  रहा  है ,

*  अगर  इसी  तरह  भ्रष्टाचार  बढ़ता  रहा  तो  क्या  हम  इस  वृक्ष  की  सुविधाओ  का लाभ  ले  पाएंगे

* भूख  से  मरते  लोग ,   आत्महत्या  करने  को  मजबूर  किसान ,    अपराधियों  का  शिकार बनने

और  लुटते  रहने  को  मजबूर  जनता ,    भ्रष्ट  राजनेता  और  अफसरशाही ,      न्यायपालिका  की

कछुआ  चाल,      अमीरी  गरीबी  में  बढती  खतरनाक  असमानता ,     मासूम  युवाओ  में  बढती

नशे  अपराध  और  अश्लील  क्रियाकलापों  की  प्रवृत्ती ,   आधुनिकता  के  नाम  पर  बालमन  को

गन्दी  बाजारू  संस्कृति  परोसती  फिल्मे  और टेलीविज़न ,     महिलाओ  की  बढती  असुरक्षा ,

आरक्षण  की  राजनीती  में  दम  तोडती  मेघा  शक्ति  और  मिटती  प्रतिस्पर्धा  की  भावना ,    ये

सभी  उसी  कमजोर  होते  तने  के लक्षण  है  जो  राजनीतिक ,  आर्थिक  ,  सामाजिक  ,  भ्रष्टाचार  के

दीमको  का  परिणाम है .

* यह  सही  है  की  ६०  वर्षो  में  हमने  हर  क्षेत्र  में  तरक्की  की  है ,  पर  ये  भी  सही है  की

भ्रष्टाचार   अनैतिकता  , परस्पर  अविश्वास , और  इंडिया  और  भारत  के  बीच  की  दुरी

उससे  कही  ज्यादा  तेज़ी  से  बढ़ी  है ………

* समय  पर  दवा  होनी  जरुरी  है  नहीं  तो  ये  वृक्ष  भी  बहुत  अलग  नहीं  है  उस  आम के

वृक्ष   से.

विचार- विमर्श—

इस   राष्ट्र   वृक्ष   में   लगे  दीमको  को  मिटने  के  लिए  दवा  कौन  लायेगा ?

२.  हम  कब   तक  हाथ  पर  हाथ  धरे   बैठे   रहेंगे  और इंतजार  करेंगे  किसी  चमत्कार का ?

३.   देश   के   युवा   कबतक   अपनी   जिम्मेदारियों   से   भागेंगे ,

४ . आप   स्वयं  भ्रष्टाचार   से   लड़ना   कब   शुरू  करेंगे ?

जल्दी   दवा करे…………. क्योकि   दाव   पर  आने  वाली  पीढ़िया  है.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh