Menu
blogid : 150 postid : 17

अन्दर कुछ भी नहीं कीमती , बाहर सोने का ताला

सर झुकाकर आसमा को देखिये ...........
सर झुकाकर आसमा को देखिये ...........
  • 55 Posts
  • 992 Comments

पिताजी  अभियोजन  विभाग  में  अधिकारी  है  और  उनका  आवास  जजेस  कालोनी  में  था,  जहा मै परीक्षा  की  तैयारी  करने  गया था, चूकि   कालोनी  प्रशासनिक अधिकारियो  की  थी  इसलिए  वहा सुरक्षा  के   लिए  ४-५  होमगार्ड  थे, एक  शाम  की  बात  है  मै  बाहर  टहल  रहा  था  तो  देखा  की  एक  बुजुर्ग ,  १४-१५ वर्ष  के  बच्चे  के  साथ  वहा  आया I  वो  किसी  अधिकारी  से  मिलना  चाहता था  और  उसका  घर  नहीं  जानता  था  और  पुलिसवालों  से  पूछने  की  हिम्मत  भी  नहीं  कर  पा रहा  था,
मै  समझ  गया  उसकी  दशा  और  उसकी  झिझक  को,  उसने  मेरी  ओर  देखा  और  बड़े  ही  निरीह ढंग  से  अधिकारी  का  नाम  लेकर  पता  पूछा.  मैंने  उसे  बता  दिया… अगला  सवाल  और  भी  डरा हुआ  था …उसने  पूछा  ” बाबु  क्या  वो  होमगार्ड  साहब  मिलने  देंगे  ?  मैंने  कहा  जाइये  क्यों  नहीं मिलने  देंगे.   तब  वह  गया  अन्दर  खबर  गई  और  करीब  १  घंटे  बाद  साहब  निकले  बाहर  ही  २ मिनट  बात  की  और  वह  वापस  चला  गया ,..उसके  ठीक  २  घंटे  बाद  मै  फिर  चाय  लेकर  टहल रहा  था  छत  पे ,  तभी  एक  लम्बी  सी  गाड़ी  आकर  वही  रुकी  उसपे   रुतबे  का  निशान  सरकार का   झन्डा  था . (आप  समझ  गए  होंगे  पार्टी  का  चुनाव  चिन्ह  और  मुखिया  की  तस्वीर जो  कोई  चिरकुट  टाइप  का  नेता  भी  हो  अपनी  वाहन   में  लगा  ले  तो   उसे  महसूस होता  है   मानो  वह  वाहन  नहीं  सरकार  चला  रहा  है  ). साहब  को  खबर  हुई  साहब  बाहर निकले  सम्मान  सहित  मेहमानों  को  अन्दर  ले  गए…और  हम  वापस  अपनी  पढने  की  जगह  पे आकर  बैठ  गए …..

कई  बाते  मन  में  आई  , कई  सवाल  उठे,  प्रशासनिक   वर्ग  और  आम  जनता  के बीच  एक  बहुत  चौड़ी  रेखा  को  महसूस  किया  , और  देखा  की  दोनों  ही  उसे  पार  करने  से डरते  है  प्रशासनिक  वर्ग  अभी  भी  वही  सोने  का  पिजरा है  जिसके  वो कदम  नहीं रखना  चाहते  है  और  सामान्य   वर्ग  इस  पिंजरे  को  अपनी  पहुच  से  दूर  मान  चूका  है ,
अंग्रेजो  के  समय  से  चली  आ  रही  ये  नौकरशाही  एक  परंपरागत  शांत  साम्राज्य  की तरह  दिखती   है और  यही  इस  दुरी  का  कारन  है  जो  आम  इंसान  में  डर  पैदा  करता  है ,इस  दूरी  के  कारण  प्रशाशन  आम  लोगो  का   समुचित  सहयोग   नहीं  पाता
है  और  नौकरशाही  अपने  साम्राज्यवादी  अहम्  में  खोकर  अपने  उद्देश्यों  (जन सेवा )  की  पूर्ति में  नाकाम  हो  चूकि  है , नौकरशाह  एक  राजा  की  तरह  व्यवहार  करते  है

ये  सोने  का  पिजरा  बहुत  शांत  है ,  भीड़  से  दूर  ,  इसके  पास  जब  आम  इंसान  जाता  है तो  उसे  वही  उत्तर  वैदिक  कालीन  गूंज  सुनाई  देती  है —

” मुझे  मत  छुओ  ,  मै  तुम्हारी  पहुच  से  दूर  हु “

आपसे—

क्या   ऐसा  नहीं  लगता  की  फिर  से  एक  नई  वर्ग  व्यवस्था  बनती  ज़ा रही  है,  जो अपने  से  नीचे  वालो  को  अछूत  समझती  है  और  ये  दरार  किसी जाति  या  धर्म  के कारण  नहीं  बल्कि  आर्थिक  स्थिति  और  रुतबे  के  आधार  पर  बन  रही  है ,
और  सरकारी  अधिकारी  और  कर्मचारी  वर्ग  का  आम  जानता  से  व्यवहार  इतना  बुरा  हो  चूका  है  की  आम  इंसान  को  उनसे  अपमानित  होने  का  भय  रहता  है  इसकारण वो  उनसे  दूर  ही  रहना  पसंद  करते  है  और  मदद  करने  में  भी  संकोच  करते  है


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh