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आज जबकि एक ग्लोबल वर्ल्ड की बात हो रही है और पुरे विश्व को एक बड़े गाँव के रूप में देखा जा रहा है तो ऐसे में इस तरह नस्लवादी घटनाये न सिर्फ़ मानवता के नाम पे कलंक है बल्कि ये शर्मनाक और चुनौतीपूर्ण भी है…..क्योकि आज जब हम राष्ट्रवाद,जातिवाद से ऊपर उठ के मानववाद की बात करते है तो ऐसी घटनाए हमारे वैश्विक लक्ष्यों को और मानवतावादी प्रयासों को नुकसान पहुचने वाली ही है,
ऑस्ट्रेलिया में जिस ढंग से भारतीयों पे हमले हुए है उनसे तो लगता है की उपनिवेशवादी समय की मानसिकता से ये राष्ट्र अभी भी बाहर नही निकल पाए है !
इसमे दोष किसे दे ये समझ नही आता , शायद नस्ल,जाती,धर्म,रंग की इतनी गहरी छाप हमारे मन में बैठ चुकी है की ये चाहते न चाहते हुए भी जाहिर हो ही जाता है ! ऑस्ट्रेलिया की सरकार दोषी है क्योकि अगर मामले पर बहाने बनाने की जगह अगर तुंरत कार्यवाही की गई होती तो बात इतनी नही बिगड़ती ! भारत सरकार ने भी इस मामले पर कडा रुख नही अपनाया जो की दुखद है, वैसे अक्सर देखने में आता है की विदेशो में भारतीयों पे होने वाले अत्याचारों भारत कडा रुख नही अपनाता, इसका उदाहरण हम मलेशिया में हुई घटनाओ में देख चुके है जिसमे हजारो हिंदू मन्दिर तोड़ दिए गए पर सरकार ने कोई भी कडा या संतोषजनक रुख नही दिखाया!बहरहाल ऑस्ट्रेलिया और कनाडा की घटनाओ ने देश को शर्मशार किया है !हम अपने देश में उच्च शिक्षा का स्तर बढ़ाने में असफल रहे है और हमारी व्यवस्था ऐसी है जिसमे विदेशो से मिली छोटी मोटी डिग्रियों को भी सर माथे पर रखने की प्रवृत्ति है ! अपनी व्यवस्था को न सुधार पाने के कारण अरबो रूपए विदेशो में फीस दे दी जाती है !वजह सिर्फ़ ये है की हमारी मानसिकता बन गई है की विदेश में जो मिले वही अच्छा होता है….. इसी मानसिकता से वे भी ग्रस्त है की हम विदेशी है हम श्रेस्ठ है यही नस्लवाद,रंगभेद का मूल है,,
आपसे—अगर सरकार इन हमलो पर एक लाचार दर्शक बन कर खड़ी है तो ऐसे में जनता को क्या करना चाहिए ?
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